मालकिन और नोकर की कहानी

मालकिन ने घर पर 16 साल की नौकरानी रखी हुई थी। रात होती तो वह मालकिन का मसाज भी करती। मैं सारा दिन बाहर धूप में काम करता और रात को फर्श पर सोता, एक दिन उस नौकरानी की मिन्नत समाजत की और उसके कपड़े पहनकर उसकी जगह मैं मालकिन के कमरे में पहुँच गया। उस रात मेरे होश उड़ गए, जब मालकिन ने मुझे नौकरानी समझकर अपनी...



आज भी जब में गर्मी और चिलचिलाती धूप मैं तप कर घर के लिए सौदा लाया था, तो पसीने से लथपथ हो चुका था। जैसे ही में घर में दाखिल हुआ रानू मालकिन के AC वाले कमरे से बाहर निकली। हाथ में तेल की शीशी पकड़ी हुई थी। मुझे देख कर बड़ा इतराकर बोली कितनी ठंड है मालकिन के कमरे में, और बाहर इतनी गर्मी है। जैसे कहीं आग लगी हो, यह सुनकर मेरा जी ही तो जल के रह गया था। मैं पूरा दिन घर और बाहर के



चक्कर काट काट कर गर्मी में जल भुन जाता था। फिर घर के ज्यादातर काम मेरे सर पर थे और यह रानू की बच्ची कितने मजे में थी। बस मालकिन की तेल से लीपापोती करती और मालकिन उसके सदके वारी जाती, मुझे देख कर कहने लगी। तू यहां खड़ा खड़ा क्या कर रहा है। चल जा जल्दी से गरमा गरम परांठे बना और नाश्ता रख मालकिन अभी नहाकर आ ही रही होंगी और मुझे भी बड़ी भूख लगी है यह सुनकर मैंने उसे गुस्सेली


नजरों से देखा कमबख्त देखने में ही धान पान सी लगती थी। खाने बैठती तो वो 4 बंदों का खाना खाकर ही डकार मारती। बहरहाल नौकर क्या और नखरा क्या मुझे तो सब कुछ करना ही था । इसलिए मैंने सारा सामान किचन में रखा, फ्रिज से आटा निकाला और पराठे बनाने में जुट गया। गरीब होना भी एक बहुत बड़ी आजमाइश होती है। और यह मुझसे बेहतर कौन जानता था। मैं घर में सबसे बड़ा था और मैं ही घर का अकेला

दुख भारी कहानी


जिम्मेदार भी था और मेरी उम्र उस वक्त सिर्फ 15 साल थी। मां ने दिन रात के लिए मुझे एक बंगले में नौकर रखवा दिया था। वहां पर मालकिन हीं रहती थी। मालिक तो परदेश में होते थे। घर में और भी बहुत से नौकर थे। लेकिन मैं और रानू दिन-रात मालकिन के पास ही रहते थे। उनकी अपनी कोई औलाद भी ना थी। मालकिन वैसे तो देखने में ठीक-ठाक थी। लेकिन न जाने क्यों वो दो-दो घंटे रानू से अपना मसाज करवाती, मालकिन टांगे



शीशे की मेज पर टिकाकर बैठ जाती और रानू को जमीन पर बैठा लेती। शायद अमीर लोगों के ऐसे ही चोंचले होते हैं। मैं बहरहाल अपनी मालकिन के दोगले रवैया से बड़ा तंग था। एक तरफ वो जितनी रानू के साथ मेहरबान थी। दूसरी तरफ मेरे साथ उनका रवैया इतना ही सख्त था। सौदा सल्फ लेकर आता तो ₹1 भी इधर उधर ना होने देती और चीज महंगी मिलती तो बातें भी मुझे सुनने को मिलती और यह कमबख्त मारी रानू




चापलूसी करती और मालकिन का दिल जीत लेती शायद रानू मुझसे ज्यादा तेज थी। तभी मालकिन को उसने अपना कर रखा था। उसकी तनख्वाह भी मेरी तनख्वाह से ज्यादा थी और रहती भी मालकिन के साथ AC वाले कमरे में थी। गर्मियों के दिन थे इसलिए मालकिन का ज्यादातर वक्त अपने कमरे में AC के अंदर ही गुजरता था। मैंने जले दिल के साथ नाश्ता बनाया तो रानू किचन में आकर कहने लगी कि मालकिन कह रही



है कि नाश्ता उनके कमरे में ही लगा दो। जब मैं कमरे में गया तो ठंडी AC की हवा ने मुझे एकदम ही पुरसुकून कर दिया। सामने रखें टेबल पर मैंने पराठे और दूसरे सामान रखे उस वक्त रानू भी सोफे पर चढ़कर बैठी थी। सामने एलइडी पर कोई ड्रामा देख रही थी। रिमोट तक उसके हाथ में था और मालकिन को किसी ड्रामे की कहानी बड़े शौक और दिलचस्पी से बता रही थी। मेरा भी दिल चाहा के मालकिन से कहूं कि मुझे भी यहीं बैठ

(मेरी दूसरी मोहोब्बत पार्ट 1)👇
मेरी दूसरी मोहब्बत पार्ट 1

कर नाश्ता करने दे। बाहर तो वाकई गर्मी और पिस थी कि लगता था, इंसान चूल्हे में खड़ा है। अभी मैं ऐसी कोई हिम्मत जता ही नहीं पाया था कि रानू कहने लगी। तुम यहां खड़े खड़े मुंह क्या तक रहे हो। चलो जाओ बाहर जाकर फ्रिज में रात का बचा हुआ खाना पड़ा है। वह उठाकर खा लो, वरना तुझे पता है। भोजन बर्बाद करने पर कितना पाप लगता है। मेरा दिल चाहता कि रानू का गला ही दबा कर उसे जान से मार डालूँ वह क्या




इस घर की मालकिन थी जो मुझ पर यूं रोब जमाती थी। मुझसे इतनी बड़ी भी ना थी। अगर मैं 16 साल का था तो वह 17, 18 साल की होगी, लेकिन बात तो ऐसे करती जैसे मालकिन की नौकरानी ना हो, उसकी सगी बेटी हो और फिर मालकिन भी वही करती जो रानू कहती ऐसी भी नौकरानी से क्या हमदर्दी थी। मेरी समझ से बाहर था। मैं कमरे से बाहर आ गया। बेदिली से नाश्ता किया। किचन में धोने वाले बर्तनों से सिंक भरा



पड़ा था। रूखी सूखी खाकर मैंने गुजारा किया और बर्तन धोने लगा। अभी किचन साफ किया ही था कि रानू फिर से नाश्ते के बर्तन लाकर सिंक में पटक गई। मुझे उस पर गुस्सा आने लगा क्योंकि बर्तनों के बीच में सब्जी और रोटी के टुकड़े भी मौजूद थे। मैंने कहा तुम्हें तमीज नहीं है जरा भी, अभी मैंने सारा शिंक धोया है ये चार बर्तन तुम खुद धो लो मुझे अभी सफाई भी करनी है। मेरी बात सुनकर वह मेरे पास आई और गुस्से से मेरा



कान पकड़ कर मरोड़ दिया। मैं कराह कर रह गया। कहने लगी। जुबान चलाई तो एक मुंह पर थप्पड़ लगाऊंगी। मालकिन से तुम्हारी शिकायत लगा दूंगी निकम्मे निखटटू कामचोर बदतमीजी करोगे मुझसे, रानू का लहजा ऊंचा हुआ तो मेरी जान पर बन गई। फौरन से मालकिन भी किचन में आ गई, तो रानू कहने लगी कि मालकिन यह बर्तन धोने से इंकार कर रहा है। बस इसे हराम की चढ़ गई है जितनी मेहनत मैं करती हूं। अगर




इसे करनी पड़ जाए ना तो इसे पता लग जाए। रानू का अंदाज तो ऐसे बदला जैसे इससे बड़ा बेकसुर दुनिया में कोई है ही नहीं। यह सुनना था कि मालकिन की खा जाने वाली नजरें मुझ पर गड़ गई। कहने लगी के कर्मवीर के बच्चे मैं तेरे मुंह पर दो थप्पड़ लगाऊंगी। अगर तूने रानू के साथ बदतमीजी की तो तेरी खैर नहीं, तुझे जो रानू कहती है वही काम कर खबरदार जो तूने रानू के साथ जुबान दराजी की तो तेरी तनख्वाह काट





लूंगी। मैंने कहा मालकिन देखें यह सारी सब्जी ओर रोटियां सिंक के बीच में फंस गई है और अभी मैंने सिंक धोया है। लेकिन मालकिन को कहां रानू का कोई ऐब नजर आता था, कहने लगी, कोई बात नहीं। अगर इसने कर दिया है तो तुम साफ कर दो। तुम्हें इस घर में आखिर रखा किसलिए है मालकिन ने बड़ी लगावट और मोहब्बत भरी नजरों से रानू को देखा और कहने लगी कि चल रानू तू कमरे में, तेरा बस यही काम है कि मुझे राजी




रखा कर। दोनों ही पता नहीं कमरे में करती क्या थी मालकिन तो रात को भी रानू को क्वार्टर की बजाए अपने कमरे में ही सुलाती थी। वह भी AC वाले, कभी-कभी तो मुझे रानू पर शक होता था । कभी लगता कि यकीनन रानू मालकिन के ऊपर जरूर कोई जादू टोना करवाती है। लेकिन वह तो मेरी सोच से बहुत आगे बढ़ गई थी। जो काम वह मालकिन के साथ करती थी। मैं तो सोच भी नहीं सकता था। बहरहाल एक बार में मालकिन



के कमरे में शाम की चाय उन्हें देने गया तो जैसे ही मैंने कमरे का दरवाजा खोला मालकिन बेड पर सो रही थी और रानू उनके साथ,,, मैंने फौरन से कमरा बंद कर दिया। मेरा दिमाग बुरी तरह से चकरा गया था। कुछ ही देर में कमरे का दरवाजा खुला रानू बहुत ही गुस्से में मुझसे कहने लगी कि बिना इजाजत तुम कमरे में करने क्या आए थे। मैं तो अपनी नजरों में शर्मिंदा होकर रह गया था। इसलिए तुरंत वहां से किचन में चला गया,



लेकिन अब मैं मालकिन और रानू के बारे में शक में पड़ चुका था। रानू अच्छी लड़की नहीं लगती थी। मैं अब सोच चुका था की रानू के बारे में पूरी हकीकत जान लूंगा। जैसे ही मालिक आएंगे तो मैं उसकी शिकायत मालिक से लगाऊगा। जब से मैं नौकरी पर लगा था, मालिक बस एक ही बार हिन्दुस्तान आए थे और बहुत ही अच्छे मिजाज के थे। उनका रवैया मेरे साथ बहुत अच्छा था। बाहर जाने से पहले उन्होंने मुझे मुट्ठी भर कर




नोट भी पकड़ाये थे और हंसते हुए कहा था। अपनी मालकिन को मत बताना वरना खामखा मुझसे लड़ेगी और कहेगी नौकरों को सर पर मत चढ़ाया करो। मैं भी मालिक की बात सुनकर थोड़ा सा मुस्कुराया यकीनन वह मेरी बात का भरोसा करते थे। अगले ही दिन नाश्ते के दौरान मैंने मालकिन से कहा कि मालिक कब आएंगे मालकिन, मैंने सवाल मालकिन से किया था, लेकिन अचंभे में रानू आ गई थी। कहने लगी तुम्हें मालिक से




भला क्या काम है, मैंने भी उसे गुस्से से घूरा, मैंने कहा अब हर बात तुम्हें थोड़ी बताऊंगा। यह सुनकर रानू के चेहरे की रंगत थोड़ी सी बदल गई। शायद वह समझ गई थी कि मैं किस बात की तरफ, इशारा कर रहा हूं। मालकिन कहने लगी कि हां शायद चंद दिनों तक तुम्हारे मालिक आ जाएंगे। मैंने ये सुनकर रानू की तरफ देखा जो बार-बार दुपट्टे से अपना पसीना पूछ रही थी। आज तो उसके चेहरे की हवाईया उड़ी हुई थी जैसे मैंने नाश्ते


के बर्तन उठाए और किचन में गया। वह मेरे ही पीछे आ गई। मैं बर्तन धो रहा था तो कहने लगी कि खबरदार कर्मवीर के बच्चे अगर तूने जुबान खोली। कुछ भी तूने मालिक के सामने कहा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। तुम मुझे जानते नहीं हो, मेरा डसा हुआ जहर भी नहीं मांगता। याद रखना मैंने उसकी तरफ देखा और कहा, मुझे पता है कि तुम कितनी खतरनाक हो मुझसे ज्यादा तुम्हें और कौन बेहतर जान सकता है बहरहाल,मेरा जो



जी चाहेगा मैं वहीं करूंगा और तुम मुझे रोक नहीं सकती। मेरी बात सुनकर आज वह झाग की तरह बैठ गई। पहले तो मुझे घूर घूर कर देखने लगी । फिर कहने लगी। अच्छा रुको उसने अपने दुपट्टे के किनारे से बंधी हुई गिरह खोली ओर पुराने पुराने से दस दस के नोट निकाल कर कहने लगी। यह रख लो पूरे ₹100 है। मेरी तरफ से कुछ खा लेना और अगर तुमने मेरी बात राज में रखी तो मैं तुम पर ऐसे ही पैसे बरसाती रहूंगी। बहरहाल




मैं जो सोच चुका था, वह तो मुझे करना ही था लेकिन जब तक मालिक नहीं आ जाती थे तो क्या बुरा था कि मैं उस रानू की बच्ची से थोड़े से पैसे ही बटोर लेता। मैंने वो नोट जेब में डाल लिए। रानू के चेहरे की हवाईया पल भर में खत्म हो गई जैसे उसका मसला हल हो गया हो। एक बार रानू मालकिन की मालिश करने के लिए तेल कमरे में ले जाने लगी तो मैंने उसे कहा कि बाहर बहुत गर्मी है और तुम रोजाना मालिश के बहाने कमरे में चली जाती



हो। ऐसा करो कि आज मुझे अपने कपड़े दो ताकि कुछ देर में मालकिन के कमरे में AC में बैठ जाऊं। मेरी बात सुनकर वह मुझे हैरत से देखने लगी। कहने लगी तो क्या तुम मसाज करोगे, मालकिन का, शर्म नहीं आएगी। तुम्हें मैंने कहा कि ऐसा करो कि मसाज तुम कर दो और जब मालकिन के पांव के तलवों का मसाज करना हो तब तुम बहाने से कमरे से बाहर आ जाना और मुझे अपने कपड़े देना मैं पहन कर उनके तलवों का मसाज कर दूंगा। इस




बहाने थोड़ा मुझे भी सुकून मिल जाएगा। बाहर इस वक्त आग बरस रही थी। शायद 40° के करीब टेंपरेचर था। मेरी बात सुनकर कुछ देर वह सोच में पड़ गई। उसके बाद कहने लगी चल ठीक है जब तक मैंने किचन का सारा काम समेटा, तब तक रानू मालकिन का मसाज करती रही। जैसे ही मैं •फारिग हुआ तो रानू कमरे से बाहर आई ओर मेरे हाथ में तेल की शीशी थमा दी और साथ में अपना जोड़ा भी, कहने लगी मालकिन नींद में है




रही थी। जी तो चाहा के मसाज यही छोड़ू और जमीन पर लेट कर सो जाऊं, लेकिन यह भी मुमकिन न था । बहरहाल आधा घंटा मेरा बहुत अच्छा गुजर गया और अब मैं यही करता था। रानू मेरी बात मानने पर मजबूर थी क्योंकि जो राज में उसके बारे में जानता था, उसे राज रखने के लिए अब वह मेरी बात मानने लगी थी। लेकिन कुछ दिन बाद जो कुछ मेरी आंखों ने देखा तो मेरे तो होश ही उड़ के रह गए थे। वैसे तो मैं क्वार्टर में

होता था







लेकिन कुछ दिन से मेरी तबीयत में बहुत सुस्ती हल्का हल्का सा जिस्म में बुखार था। क्वार्टर में तपिश और गर्मी बहुत ज्यादा थी। रात को मुझे बेचैनी से नींद नहीं आ रही थी कि मैं क्वार्टर से निकल कर बाहर आ गया। मेरा इरादा था के बगीचे के बीच जाकर लेट जाऊं। कुछ तो ताजी ठंडी हवा आएगी। हम नौकरों की भी अजीब जिंदगी होती है। आंधी हो या तूफान बीमारी हो या कुछ और हमें घर के सारे काम वैसे ही करने पड़ते हैं क्योंकि




बिना काम के तनख्वाह नहीं मिलती। क्वार्टर में रहता तो मेरी नींद पूरी ना हो पाती यकीनन सुबह मुझसे काम भी ना होता। यह भी मुमकिन था कि मुझे बुखार तेज हो जाता। जैसे ही मैं क्वार्टर से निकलकर बाहर लॉन की तरफ आया। मुझे खुसर पुसर की आवाज ने चौकन्ना किया था। शक के मारे पाँव से जूते उतारे और आहिस्ता आहिस्ता छुप छुप कर आगे बढ़ने लगा। मुझे लगा सामने रानू और कोई नौजवान खड़ा है। चौकीदार भी





उस वक्त तक अपने क्वार्टर में जा चुका होता था। इसलिए लोन में कोई भी नहीं होता था। रानू के दुपट्टे से मैंने उसे पहचाना था। लेकिन वह नौजवान कौन था, यह मुझे समझ नहीं आ रही थी। मैं दबे पांव थोड़ा आगे बढ़ा तो मुझे उनकी खुसर पुसर समझ आने लगी। जो कुछ रानू उस नौजवान से कह रही थी। मेरे पैरों तले से जमीन निकालने के लिए काफी था। अगर मैं कुछ देर वहां खड़ा होता तो यकीनन उस शातिर लड़की को मेरे आने का




पता चल जाता। वह बहुत तेज किस्म की लड़की थी। इसलिए मैं वहीं से पलट कर अपने क्वार्टर में आकर बैठ गया। पहले ही बुखार से मेरे सर में दर्द था और अब रानू की बातें सुनकर तो मेरा सर चकराने लगा था और सबसे बड़ा मसला यह था कि मालकिन मेरी किसी भी बात का भरोसा नहीं करती थी। पिछले चंद महीने से जो खेल रानू मालकिन के साथ खेल रही थी उसका भयानक अंजाम मैं अपने कानों से सुन कर आया था और अगर




अभी मैं चुप रहता तो यह मेरी नमक हरामी होती। मैंने एक दो बार मालकिन से बात करने की कोशिश भी की। लेकिन जैसे ही मैं रानू की जरा सी बुराई करता तो मालकिन तो मेरे सर के बालों को आ जाती। कहती खबरदार जो रानू के बारे में कुछ भी कहा तो, लेकिन चुप रह कर भी गुजारा ना था। जैसे-जैसे वक्त गुजर रहा था, मेरा दिल मुट्ठी में दबोचा जा रहा था क्योंकि रानू मालकिन के साथ बहुत बड़ा खेल खेलने जा रही थी





और अगर वह कामयाब हो जाती तो मैं अपनी नजरों में जरूर गिर जाता क्योंकि मैं यह राज जान चुका था। एक बार मैं जब सौदा सल्फ लेने गया तो मालिक का नंबर भी अपने साथ ले गया जो उन्होंने मुझे एक कागज पर लिख कर दिया था कि अगर मुझे कुछ पैसों की जरूरत हो तो मैं मालिक से फोन करके मंगवा लूं। मैंने वह नंबर लिया और टेलीफोन बूथ पर चला गया। कॉल मिलाई तो 1 मिनट का 100 रुपये उसने मांगे और मेरे पास इतने ही



जेब में थे। मैंने कॉल पर मालिक को सारी बात बता दी। मेरी बात सुनकर मालिक परेशान हो गए और कहने लगे कि तुम मालकिन का ख्याल रखना जैसे भी मुमकिन हो मैं हिन्दुस्तान पहुंच जाऊंगा। 2 दिन बाद ही रानू ने उस नौजवान को बुला लिया। मैं बहुत परेशान था कि अब क्या करूं क्योंकि मालिक के कोई भी चांसिज मुझे नजर नहीं आ रहे थे। बहरहाल में बेचैनी से बाहर लोन के चक्कर का काटने लगा, क्योंकि रानू उस नौजवान को




लॉनज में ले गई थी। मैं जानता था कि अंदर अब कौन सा खेल खेला जाएगा, लेकिन मैं बेबस था क्योंकि लाउंज का दरवाजा लॉक था। फिर मुझे याद आया कि बाहर की तरफ मालकिन के कमरे की खिड़की है। मुझे वहां से झांक कर देखना चाहिए कि अंदर क्या हो रहा है। जैसे ही मैं कमरे की खिड़की के पास गया और मैंने खिड़की खोली तो अंदर का मंजर देखते ही मेरी जान निकल गई थी। उस नौजवान ने मालकिन को कुर्सी पर



बैठाकर बांधा हुआ था। उनके दोनों हाथ पीछे को बांधे थे। मुंह पर भी रुमाल बांधा था और रानू फटाफट से अलमारी से मालकिन का जेवर निकाल रही थी। चंद दिन पहले भी मैंने रानू को यही हरकत करते देखा था। जब मैं कमरे में शाम की चाय लेकर गया था तो मालकिन सो रही थी और रानू उनकी ज्वेलरी में से सोने के टॉप्स निकालकर अपने दुपट्टे पर बांध रही थी। उस दिन उस लड़के से लॉन में यही कह रही थी कि हम सारा




जेवर चोरी करके मालकिन का कत्ल करके यहां से भाग जाएंगे। मालकिन अपनी आंखों से सब कुछ देख रही थी जिन पर उन्हें अंधा एतबार था। अचानक उसी वक्त पुलिस की गाड़ी और मालिक की गाड़ी का होरन एक साथ सुनाई दिया। मैंने दिल में शुक्र किया और वहीं से पलट गया। चौकीदार के उठने से पहले मैंने मैंन गेट का दरवाजा पूरा खोल दिया। पुलिस और मालिक दोनों इकट्ठे अंदर आए थे। मुझसे मालकिन का पूछने लगे तो




मैंने कमरे की तरफ इशारा किया और कहा कि वह दोनों वहीं मौजूद हैं। मौके पर दोनों पकड़े गए थे और मैंने शुक्र किया कि मालिक का नुकसान होने से बच गया मालकिन सारी हकीकत जान चुकी थी। इसलिए मेरे सामने भी शर्मिंदा थी। मालिक ने मुझे 2 हजार का इनाम दिया और साथ में मेरी नौकरी भी पक्की कर दी। मेरे मां-बाप ने मुझे यही सिखाया था कि अपने मालिक के साथ कभी भी दगाबाजी ना करो मेरी अच्छाई का सिला मुझे मिल चुका था,,...


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