अरे बहु लाये थे या नौकरानी | एक पढ़ी लिखी संस्कारी बहु की दर्द भरी कहानी

मुझे आज भी वह दिन याद है जब मैं अपनी

शादी के 3 साल बाद हिन्दुस्तान वापस आया था, घर का हर शक्स एयरपोर्ट पर मौजूद था, जिसमें मेरी 2 साल की बेटी आलिया भी थी। मेरी आंखें दीपा को ढूंढ रही थी, लेकिन उसको वहां ना पाकर मैं थोड़ा बेचैन सा हो गया। घरवालों से मिलकर आलिया को गोद में लिया तो वह जोर-जोर से रोने लगी। राजीव लाओ इसे मुझे दे दो दीदी की आवाज आई




तो फौरन ही मैंने दीपा का पूछ लिया दीदी दीपा क्यों नहीं आई मुझे लेने और फिर इतनी छोटी सी बच्ची को भी भेज दिया। राजीव तुम परेशान मत हो। वह घर पर तुम्हारे लिए खाना बना रही है। वह कौन सा रोज रोज काम करती है। आज सब लोग तुम्हें मिलने आए हैं तो इसलिए खाना बना रही है। मैं दीदी की बात सुनकर खामोश हो गया। एयरपोर्ट से घर तक कोई 1 घंटे का सफर था। मैं पूरा रास्ता आलिया से खेलता रहा।


अब वह मुझे देख कर हंस रही थी। सब कुछ अच्छा सा लग रहा था लेकिन दिल उदास था। काश दीपा भी आ जाती। 3 साल हो चुके हैं। उसे देखें क्या खाना ज्यादा जरूरी था, मिलना नहीं। मेरे दिल में कुछ अजीब अजीब से सवाल उठ रहे थे। खैर घर के दरवाजे पर पहुंचे तो दीपा पहले से ही गाड़ी की आवाज सुनकर वहां पहुंच चुकी थी। दूर से देखा तो दिल चाहा जाकर मिल लूं लेकिन नहीं बस दूर से ही मुस्करा दिया और वह हल्की सी मुस्कुराहट के बाद पानी लेने चली गई।



पूरा दिन मेहमानों का आना जाना चलता रहा। घर वाले बहुत खुश थे। मेरे दोस्त भी मिलने आ रहे थे। दीपा किचन से निकल ही नहीं पा रही थी। कभी किसी को चाय पेश करती और कभी किसी को खाना देती, मानो यूं लग रहा था। जैसे मेरी दीपा तो कहीं खो सी गई है। शाम हुई तो महमानों का रस कुछ कम हुआ। सब खाना खाने में बिजी थे। सोचा दीपा की कुछ मदद करूं। सुबह से बस काम में ही लगी है। अभी उठा ही था कि मम्मी ने बुला लिया राजीव


मेरे पास आकर बैठ जाओ जी मम्मी दीपा से कुछ बात करनी है। आ रहा हूं। उसे छोड़ो काम खत्म करके खुद ही आ जाएगी। वैसे भी कौन सा काम करती है, आज ही तो करने लगी है। उसे करने दो, मैं हैरान था क्योंकि दीपा के बारे में मैं ये दूसरी बार सुन रहा था दीपा के खिलाफ कहीं ना कहीं आग मेरे दिल में लग चुकी थी। सुबह जब दीदी ने दीपा को काम ना करने का सुनाया और साथ में मम्मी भी दीपा को डांटने लगी। तो मैं भी चुप करके बैठ गया




और सोचने लगा कि शायद मम्मी ठीक कह रही होगी। आखिर वह मेरी मां है। गलत कैसे कह सकती है रात को जब सब सोने चले गए तो दीपा से कुछ बात करने का मौका मिला। दीपा इतनी चुप क्यों रहती हो। तुम तो बहुत बोला करती थी। याद है ना पूरा दिन हम ऑफिस में बस तुम्हें चुप कराया करते थे। कभी वो उससे लड़ाई तो कभी मैडम सुनीता से, दरअसल दीपा और मैं एक ही ऑफिस में नौकरी करते थे। दीपा मुझे पहले दिन से ही पसंद आ गई थी।



जब वह पहले दिन नौकरी पर आई थी। मासूम सी थी पर बोलने में पूरी तोता थी हमने 3 साल तक एक साथ जॉब की। फिर मुझे बाहर जाने का मौका मिला तो जॉब छोड़ दी लेकिन आपको कभी नहीं भूला । तुमको अपनाना चाहता था। तभी मां को राजी किया जो कि इंतहाई मुश्किल काम था। और फिर आखिरकार हम एक हो ही गए मैं बस 1 महीने के लिए ही अपनी शादी पर आ सका। शादी के बाद इधर-उधर दावत और घूमना फिरना लगा रहा। पूरा महीना गुजर गया ।



पता ही ना चला राजीव वह मैं बस दीपा ने अभी इतना ही कहा था कि आलिया ने रोना शुरू कर दिया । दीपा उसको चुप कराने और सुलाने में लग गई। मेरी आंख कब लगी पता ही ना चला। सुबह आलिया के रोने की आवाज से मेरी आंख खुल गई। दीपा यार आलिया को देखो। यह क्यों रो रही है पर आलिया की मुसलसल आवाज से आखिर में ही उठ गया । दीपा कहां हो यार ये कहते हुए मैं आलिया को लेकर कमरे से बाहर आया तो फिर से दीपा को किचन में ही पाया




चने कम पड़ गए हैं दीपा चने और लाना मम्मी की आवाज मेरे कानों में पड़ी तो कुछ देर रुक सा गया। सब लोग खाने की मेज पर थे शिवाय दीपा के मम्मी ने मुझे देखा तो बुला लिया आ जाओ बेटा नाश्ता तैयार है देखो तुम्हारे सब बहन भाई मौजूद है । मम्मी दीपा कहां है? आलिया को भूख लगी है। तभी दीदी बोली लाओ आलिया को मुझे दो तुम फ्रेश हो जाओ। इसे मैं देखती हूं। आज फिर दीपा किचन में अकेली और पूरा खानदान जिसमें कम से कम 20 लोग तो होंगे,


खाने में बिजी थे। मम्मी तो कह रही थी कि दीपा कोई काम ही नहीं करती। बस कल ही किया था तो फिर यह क्या था दीपा अपना और मेरा खाना बाहर ले आओ। शायद मेरी बात किसी को भी अच्छी नहीं लगी थी। पर कुछ ऐसा भी था जो मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा था। सुबह से दोपहर, दोपहर से शाम दीपा का बस एक ही काम था कि वह हर किसी की ख्वाहिश पूरी करने में लगी रहती। मैं समझ चुका था कि दीपा इतनी चुप क्यों हो गई है।



मेरे घर में आ जाने के बाद दीपा के चेहरे पर फिर से कुछ बदलाव आना शुरू हुआ था। शायद मेरे जाने के बाद सब उस पर हावी हों जाएंगे। तब ही वह थोड़ा सहम चुकी थी वक्त गुजरता रहा। अब वह काम छोड़ भी दिया करती थी या? मुझसे कह देती और मैं खुशी से उसकी मदद को उठ जाता। आज मम्मी की आवाज आई कि दीपा नाश्ता बना दो नेहा आई है। नेहा मेरी दीदी का नाम था जिनकी शादी हमारे घर के करीब ही बाबा के दोस्त के लड़के से हुई थी।



दीदी तकरीबन रोज ही हमारे घर आ जाया करती थी दीपा कि कमर में शदीद दर्द था। मेरे मना करने के बावजूद वह किचन में गई और नाश्ता तैयार करने लगी क्योंकि आलिया अभी सो रही थी। इसलिए मैं दीदी से बातें करने में मशरूफ हो गया। दीदी हम सब बहन भाइयों से बहुत प्यार करती थी और हम सब उनको बहुत पसंद करते थे। राजीव प्लीज खाना लगवा लें मेरे साथ में, हां ठीक है मैं सर हिला कर उठ खड़ा हुआ और दीपा की मदद करने लगा।



यह बात किसी को भी अच्छी नहीं लगी। जब नाश्ते से फारिग हो गए और दीपा भी आलिया को लेकर कमरे में चली गई तब दीदी और मैं एक दूसरे से बातें करने में मशरूफ हो गए। राजीव तुम जानते हो, मैं तुम लोगों से बहुत प्यार करती हूं। कभी ऐसा नहीं चाहती कि तुम लोग खुश ना रहो, लेकिन मेरी कुछ नसीहतो, पर अम्ल करोगे तो सुखी रहोगे। आगे तुम्हारी मर्जी है। मैं तुम पर जबरदस्ती तो नहीं कर सकती। जी जी दीदी आप बोले, आपको मालूम है




कि हम सब बहन भाई आपकी और मम्मी की बात को जरूर । अहमियत देते हैं राजीव तुम अपनी बीवी की मदद जरूर किया करो, लेकिन इस हद तक जब तक कि तुम्हें कोई ना देखें । अच्छा सा नहीं लगता। तुम बर्तन उठा रहे हो और औरतों वाले काम कर रहे हो। जो आदत तुम आज उसकी डालोगे कल वही रहेगी जो उसके काम है, उसको करने दिया करो। आखिर कार वो आहिस्ता आहिस्ता कर ही लेगी। लेकिन अगर आदत बन गई


तो फिर तुम्हें हमेशा ही उसकी मदद करना पड़ेगी। दीदी की बात मेरे दिल को लगी दिन गुजरते रहे। दीपा मुसलसल काम में लगी रहती। कभी मेरा दिल चाहता तो बस आलिया के लिए दूध बना देता। उससे ज्यादा कुछ नहीं मम्मी नहीं चाहती थी कि मैं वापस दूसरे मुल्क जाऊं। बस फिर वही रह गया चूंकि मैं एक मेकअप की कंपनी में जॉब करता था। मैंने इसी काम को घर पर ही शुरू कर दिया जिससे मैं घर बैठे ही कंप्यूटर से ऑनलाइन मेकअप सेल करके बहुत अच्छा कमा लेता।



वक्त गुजरता गया सब कुछ नॉर्मल था, मैंने कभी गौर ही नहीं किया कि दीपा क्या करती रहती है। जब मेरे 3 बच्चे हुए तो गुजारा थोड़ा मुश्किल हो गया। मेरी दोनों बेटियां तो स्कूल जाया करती थी, लेकिन बेटा अभी छोटा था। तभी मैंने और दीपा ने एक फैसला किया कि हम बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए शहर शिफ्ट हो जाते हैं। वहां दीपा नौकरी कर लेगी और में घर बैठे अपनी चीजों को सेल कर लूंगा। दीदी से मशवरा किया तो उन्होंने भी।



उसकी हामी भर ली के ठीक है। बस मम्मी को मत भूल जाना। मेरी तो ख्वाहिश थी कि मम्मी को साथ ले जाऊँ। लेकिन मम्मी अपनों को छोड़ के जाने के लिए तैयार न थी। वह बड़े भाई के साथ रहने लगी। अब जिंदगी बेहद मशरूफ थी। मैं पूरा दिन शाम तक आर्डर ही लेता और उनको उनके पते पर भिजवा देता। दीपा जॉब में बिजी थी और बच्चे पढ़ाई में एक दिन दीपा जॉब से आई तो शायद कुछ ज्यादा ही थक गई थी। आते ही सो गई और हम सब भूखे ही रह गए।



दीपा थोड़ा बीमार रहने लगी थी। अब जब वह जॉब से वापस आती तो पहले की तरह चुस्त और ठीक महसूस ना होती। अब दोपहर के खाने के साथ-साथ हम रात का खाना भी होटल से मंगवा लेते। दीपा रोज कहती कि राजीव मुझे डॉक्टर के पास ले जाओ और मैं रोज काम की वजह से ना जा पाता। सालों साल यूं ही गुजरते रहे ना मुझे टाईम मिला ना दीपा की बीमारी ठीक हुई, नहीं मालूम उसे क्या हुआ था। फिर एक दिन ऐसा आया जब मैं खूब बीमार हुआ।



पेट के दर्द ने जैसे मेरी जान निकाल दी हो। सिवाय दीपा के मेरे पास कोई नहीं था। आखिर मेरे घर वाले भी तो है। उन्होंने मेरा ख्याल क्यों नहीं रखा। एक दफा फिर मुझे एहसास हुआ कि मैं दीपा के साथ बहुत गलत कर जाता हूं, लेकिन यह एहसास शायद कुछ दिनों का होता था। फिर से वही जिंदगी जिसमें मेरी ख्वाईश होती कि दीपा जॉब से वापस आकर खाना बनाए और पूरे घर को संभाले और जब बात मेरी मदद की आती तो मैं अपनी थकान को आगे ले आता




और दीदी की कही वह बात के पत्नी की ज्यादा मदद ना करना वरना सारी जिंदगी ही करना पड़ेगी। मेरे दिमाग में मौजूद थी दीपा और मैंने लड़ना शुरू कर दिया कभी वो टाईम ना देने पर मुझसे लड़ती और कभी में खाना ना बनाने पर और कभी तेरे घर वाले और कभी मेरे घर वाले बस पूहीं तू तू मैं मैं करके वक्त गुजरने लगा। कभी मान जाते कभी लड़ने लगते। आज मैं बहुत उदास हूं। दीपा हॉस्पिटल में है, उसको ड्रिप लगी है और मैं खुद को काफी तन्हा महसूस कर रहा हूं।




बस मैं और मेरे बच्चे और कोई नहीं है मेरे घर वाले दीपा से हाल चाल पूछ कर जा चुके हैं सिवाय दीपा की मम्मी के और कोई नहीं जो इस वक्त इसके लिए बेचैन हो। मुझे आज वह दिन याद आते हैं कि क्यों हम लड़ते थे, अपना वक्त जाया करते थे। क्यों मेरी दीदी ने मुझे यह नहीं कहा कि राजीव अपनी पत्नी की मदद किया करो क्यों में दीपा को हर दफा गलत कह देता था और बस मुझे यही लगता था कि ये बस काम से भागने के चक्कर में रहती है।



क्यों हर दफा में अपने घर वालों की बात को सही समझता था। मैंने और मेरे घर वालों ने दीपा को बदल डाला था। वह दीपा जो जिंदगी जिया करती थी। मैंने उसकी खुशियां अपने तानों से खत्म कर डाली थी। मैं उसका ख्याल तो बहुत अच्छे से रखता था, लेकिन सिर्फ पैसों की हद तक दीपा तुम वापस आ जाओ। मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता तुम मेरी जिंदगी की साथी हो मुझे तुम्हारे साथ की आदत है। बस ठीक हो जाओ यार मुझे आज समझ आया



कि वह तो खाना भी नहीं बनाती थी। फिर भी क्यों थक जाया करती थी। सिर्फ खाना बनाना घर के कामों में शामिल नहीं होता और भी बहुत कुछ होता है। आजकल मैं भी खाना बाहर से मंगवाता हूं और फिर भी बहुत थक जाता हूं। पूरा दिन मैं 5 मिनट का आराम नहीं कर सकता। दीपा तुम सच कहती थी कि राजीव दुनिया की नजरों में सिर्फ मर्द ही क्यों थकते है आखिर औरत क्यों नहीं थक सकती उसको इजाजत क्यों नहीं होती कि वह अपनी थकान को बयान कर सके।



मैं अपने भाइयों से यह जरूर कहना चाहूंगा कि जो गलती मैंने की है। आप लोग कभी मत करना अपनी पत्नियों के लिए टाईम निकालो। उनके भी नखरे उठाओ क्योंकि ये सबको पसंद करती है और अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारी पत्नी जवान और हंसी रहे तो उसकी तारीफ किया करो जो मर्द ज्यादा गुस्सा करते हैं। उनकी पत्नियां जल्द बीमार और बूढ़ी होना शुरू हो जाती है और एक बहुत अहम बात हमारे घरवाले जितना हमसे प्यार करते हैं



उतना हमारी पत्नी से नहीं कर सकते। लिहाजा पत्नी आपकी है ना कि मोहल्ले वालों की और उसने आपके घर को संभालना होता है। लिहाजा उसको ओर भी ज्यादा मजबूत बनाने के लिए आपके प्यार और मदद की जरूरत पड़ती है। अपनी बीवियों की उनके काम में मदद किया करो ताकि अगर वह थके भी तो आपका साथ उसका सहारा बन जाए और आपका घर हमेशा स्वर्ग बना रहे।

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